थी एक लड़्की झल्ली सी
थोड़ी खामोश थोड़ी चुपचाप...
ज़्यादा बाते करने की आदात नही थी
फिर भी ना जाने क्युं मुझसे...
रातभर युंहि बेकार की बाते करती थि.
लफ्ज़ो मे हाल-ए-दिल
बयां करना आती नही थि उन्हे
बस...
जब भि देखती थी मुझे
दिल आंखो मे लिये देखती थी.
थी एक लड़्की पगली सि
थोड़ी बच्चो जैसी थोड़ी नादान भी
बात बात पर रुठा करती थी मुझसे
और
पल भरमे मान भी जाती थी.
रोज़ किसि बाहाने मुझसे मिला करती थी.
पुछाथा मैने उन्हे...
हमारा रिश्ता किया है?
मुस्कुराके कही थी...
मैने तो इसे दिल का रिश्ता माना है.
मेरी दुयाओ कि मुरत थी वो
मेरे इंतेज़ार कि सुरत है वो
अब किया बताये कैसि थी वो !!!!
परी जैसि नही...
सच मे एक परी थी वो.
No comments:
Post a Comment