शक था मुझे उनकी फितरत-ए-बेरहमी पर
अब यकीन मे तब्दील हो गई
उन दीनो मोहब्बत देखा तो
दिल के साथ खेलने आ गई थी
अब दर्द मे देखा
तो घाओ कुरेदने आ गई
शक था मुझे उनकी फितरत-ए-बेरहमी पर
अब यकीन मे तब्दील हो गई
उन दीनो मोहब्बत देखा तो
दिल के साथ खेलने आ गई थी
अब दर्द मे देखा
तो घाओ कुरेदने आ गई
आज कल दर्द महसूस नही
होती और खुशी भी
आजकल शराब से आँसू नही निकलते
और नींद भी नही आती
आज भी दुआओं मे हम अपनी मौत मांगते है
और जीने की चाहत भी है
आजकल ख्वाहिशों का मिजाज बढ़ी ही अजीब है
उन्हे भुलाना भी है
और दिल मे वफा भी
सोहबत–ए–दर्द
वाबस्ता खू-ए-वफा से है
फिर
नीवात-ए-मयकशी तो जायाज था
शराब कोई चारसाज़ नहीं
और कोई
ग़मगुसार भी नही
दुआओं मे हमने अपनी मौत मांगी
और कातिब-ए-किस्मत को यह मंजूर भी नही