मे सामने गया और सब
डर के मारे भाग गए ....
चलिए किस्सा सुरु से
बताते है...
तोह, ये किस्सा है
अर्पन, मेरी और ...
अर्पन से मेरी पहचान
तब हुअ था जब वो उस्के परिबार के साथ मेरे मोहल्ले मे रहने आया था, सात आट साल पहले की बात है, जिस मकान मालिक के घर पे
हम भाड़े मे रहते थे, उसी मकान मालिक के दुसरे घर अर्पन कि परिबार ने भाड़े मे लिया
था, हम लोग चार साल तक पडोसी थे, तभी अर्पन के साथ मेरी दोस्ती काफी गहरी हो गइ थी
, फिर कोलेज के पढ़ाइ के लिए वोह दुसरा शहर चला गया और अब कुछी साल हुआ है वो लौट
आया है, इस बीच उस्के घरवाले यहां अपना खुद का घर बना चुका है और खुशी कि बात ये
है के हमारा अपना घर अर्पन के मोहल्ले के करीब है.
एक हि साल हुआ है
संगीता के साथ उस्का टाका भीड़ा है, शराफात से बोले तो ...एक ही साल हुआ है उन दोनो
के प्यार की. अर्पन को अभी नौकरी नही मिलि, उधर संगीता के घरवाले अर्पन को छोड़
किसि और से शादी के लिए मनाने कि कौशिश मे लगे थे, लेकिन संगीता “नन्दिनी“ कि तरह
नही निकली, हालात सच मे “तारो को नोच” ने की और “तारो से लड़परने” कि आ गइ थी और
संगीता ने उन तारो को वोही लिखने पर
मज्बुर कर दिया जो वोह चाहती थी...दम है लड़की मै. उन दोनो की ये सच्चा
प्यार दिल को छु गया था, आजकाल बहुत कम देखने को मिलता है.
तोह बात है उस दिन
की ...अर्पन कहीं से लौट रहा था और शहर मे आते ही उस्की बाइक खराब हो गइ, रात के
दस बज चुके थे, किसि गराज मे बाइक दे के उस्ने मुझे कल किया , मै चला गया उसे लेने,
वोह भी उधरसे घर की और बढ़ रहा था, उस्के बताए हुए रास्ते से मै जा रहा था, आखरी
गली मे घुसा तोह गली के दुसरे तरफ अर्पन को देखा और उसके सामने पांच छे लड़के भी थे, वोह लोग अर्पन को डरा धमका रहे थे और गन्दी
गन्दी गालिया दे रहे थे, मै उन लोगो के पीछे था इस लिए मुझे देख नही पाए, मैने
इशारे से अर्पन को खामोश रहने के लिए कहा, देखना ये था के बात कितनी दुर तक जा
सकता है.
संगीता को एक लड़का
कुछ दिनो से पसन्द करने लगा है,वोही लड़का अर्पन को धमकाने के लिए साथ मे पांच
दोस्तो को ले आया है, वोह सब आवारे किस्म के लड़के है.
मै धीरे धीरे उन
लोगो के पीछे जा के खड़ा हो गया और जब उन्मे से एक ने अर्पन को मारने के लिए हाथ
उठाया तोह मुझे भी गुस्सा आ गया और उस्का हाथ पकड़के कहा
...चु......................ड़िया
वाले, भो.................लेभाले,चल भाग.
फिर किया मुझे देखते
ही सब डर गए और वहां से चले गए.
घर लौटते वक़्त अर्पन
को मैने कहा
...मुझे पहले बताना
चाहिए था ना के ये सब तुझे परेशान कर रहे है, लेकिन डर मत आज के बाद इनमे से कोइ
भी तुझे परेशान
नही करेगा .
अर्पन खामोश था, कुछ
सोच रहा था शायद, मैने पुछा
...तु सुन रहा है
मेरी बात ?
उस्ने जवाब दिया
...हां वोह तोह मै जानता
हुं,मै चाहता था वोह सब तुम्हे और मुझे किसि दिन एक साथ देखले बस, फिर वोह ना
मुझे परेशान करेंगे नाही संगीता को,लेकिन एक बात समझ मे नही आ रही...
...कौन सी बात?
...जब पहली दफा हम
लोगो कि दोस्ती हुइ थी, मतलब उस पुराने मोहल्ले मे जब हम पड़ोसी थे तब भी मैने एक बात नोटिस किया था जो आज भी सच
है....
...कौन सी बात ?
...तुम कभी गालियां
नेही देते, हमेशा गाली देते देते खुद को रोक लेते हो,आज भी तुम गाली देने ही वाले
थे लेकिन खुद को रोक् लिया, “शरीफ लोग गालियां नही देते” किया इसि वजह से ?
...तु जानता है ना
मे येह भी मानता हूं के “लातो के भुत बातो से नही मानते”
...तो फीर तुम गाली क्यों नही देते कभी?
मै चुप रहा.
अर्पन ने फीर पुछा
...कुछ तोह वजह है,
गहरी वजह जिस्के चलते तुम अपनी गाली ना देने कि आदत आज तक नही बदले, बताना चाह्ते
हो तो बताओ
वरना...
...बताना ज़रुरी है ?
...जी हां क्यों की मै बहुत उत्सुक हूँ जानने के लिए
...आज से 15 साल
पहले 6 जनवरी ,सोमबार शाम को किसि खासमखास से मैने वादा किया था के मे ज़िन्दगी मे आगे
से कभी गन्दी गालियां नही दुंगा, बस इतना ही बता सकता हु
...”आगे से कभी” का
मतलब ?
...उस दिन मैने बस मज़ाक
मज़ाक मे दोस्तो के साथ दो चार गन्दी गालियां दिया था और “उसे” येह बात बता भी दिया
था , बस उस्ने कस्म दे दिया.
...मतलब तुम ज़िन्दगी
मे कभी भी गालियां नही दो गे ?
बातचीत बहुत गम्भीर
दिशा के और जा रहा है ये देख कर मैने सोचा चलो बात को घुमा देते है, अर्पन को थोड़ा
Confused करते है, इसि सोच से मैने जवाब दिया
...हां गाली तोह मै
दुंगा ? बस सुरुवात करना बाकी है
...और ये सुरुवात कब
करोगे ?
... जिससे वादा किया
था वो दिख जाये तोह उसी को गाली दे के सुरुवात करुंगा
मेरा जवाब सुन के
अर्पन खामोश हो गया, मै मन ही मन मुस्कुराता रहा, बाकी के रास्ते वोह खामोश ही रहा
.