सुरु हुआ था जो
सिलसिला...
ना जाने कैसे, किस
तरह
रह गइ थी तु कहते
कहते
मै भी खामोश रहा I
ना इकरार तुने कि
ना मैने इज़हार किया
दुआएं तुने मांगी
मै फरियाद करता रहा I
थोड़ा रुका रुका सा
था कारवा
थोड़ी थकी थकी सी थी
उम्मीदे
लफ्ज़ तो खामोश थे
दोनो के
पर तेज़ थी धड़कने I
आज घड़ी भी आजीब है
वक़्त ने अपना खेल
खेला है
चाह्त तो वही है और
खामोशी मेरी मजबूरी
है I
आंसु से भरी तेरी आंखे
दर्द से भरा तेरा
दिल
आता है नज़र ,
मायुसी तेरे चहरे की
खामोशी तेरे होंठो
की
मेह्सुस करता है दिल I
बड़ी कठीन है ये मंजर
हालात भी बड़ी आजीब
है
इज़हार करु तोह मतलबी
ना समझले
खामोश रहु तोह तुझे
खोने का डर है
मोड़ ये कठीन ज़िन्दगी
की...
चाहता तो हु तुझे
छुपाना मेरी बाहो मे
आंसु तेरा पोछना है
बनके साया तेरा तेरे
साथ रहना है
बस
हालात से मजबुर हूँ
खामोशी मेरी मजबुरी
है II
Sometime, incidents of life take such a turn that having good feelings in heart you cant express it being afraid that it can be interpreted otherwise , its not the fault of the listeners...its the situation which plays vital role ...the game of time.
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