वक़्त के हवाले
कर चुके सब खुद को
किसी के पास
भी वक़्त नही
दौर रहे है
सब इंसान यहा
किस तरफ और
क्यूँ यह पता है शायाद
पर आखिर मे
खुशिया मिलेगी
इस पर सबको
यकीन नही
सब को जीतना
है यहा
एक दूसरे
को हाराना है
खुद को बहतर
साबित करना है
आसमान की
बुलंदियों को छूना है
वक़्त को हारा
सके वो इंसान कहाँ
वक़्त के खिलाफ
जा सके वो हिम्मत कहाँ
ना जाने किस डर मे जी रहे है सब
हारने का डर है शायद जीत की भूक से पैदा हुआ
जी भर के
जीने की चाहत तो है
पर किसी के
पास भी वक़्त नही
इंसान अब
इंसान कहा
वक़्त के चाबी
से चलनेवाली
खिलौने से
कम नही II
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