अक्सर सोचता
हूँ
यह जो
फासला है तेरे मेरे दरमिया
इसे
हमेशा के लिए मिटा दूँ
तू रहे
हमेशा मेरे नज़र के सामने
हर पल हर
लम्हा देख सकु तुम्हें
कुछ ऐसा
कर जाऊँ
बरसो से तरस
रही है आंखे तेरे दीदार को
कुछ करू ऐसा
के
तू चाहे भी
तो मेरी नजरों से दूर ना हो
मेरे दिल
की सुकून थी तू
वो सुकून
दिल को फीर वापस दे दु
अक्सर सोचता
हूँ
क्यूँ ना
आसमान का
एक तारा बन जाऊँ II
Beautifully written
ReplyDelete