अजीब बात
है...
लोग अच्छाई
के जीत कि बाते करते है
मैने तो हमेशा
बुड़ाईउ को जीत ते हुये देखा है.
किसि भी आतंकी हमले को ले लो...26/11, 9/11 या फिर 1993 मुम्बाई ब्लास्ट, हर हमले मे मासुम युं ही मारे जाते है, उन मासुमो का गुनाह क्या था जो उनहे ईत्नी बे-दर्द
और बे-वक़्त कि मौत मिली?
और मारनेवालो को साज़ा के तौर पे बास एक मौत!!!!! ईत्नी सारी मौत के बद्ले बास एक मौत??
अजीब बात है फिर भी लोग अच्छाई के जीत की बाते करते
है !!!!
सिर्फ मासुमो को मौत हि नही उनके मौत के साथ साथ जो
तड़्प,जो
दर्द,जो सुनापन उनके घरवालो और दोस्तो के ज़िंदगी मे आये उनका भी हिसाब लागाउ---
कहीं मा ने अपना जवान बेटा खोया, कहीं भाई ने अपना बहेन खोया, कहीं प्यार की मौत हुयी तो कही नयी दुल्हान ने अपना जीवन साथी खोया, कही मासुम बच्चे मारे गए तोह कहीं एक दोस्त ने अपना दोस्त खोया.
अजीब
बात है...फिर लोग अच्चाई के जीत की बाते करते है.
चलो
मानते है के गुनाह करनेवालो को साज़ा मिला, लेकिन सच तो ये है
के--- ना वो मुर्दे जाग उठेंगे और ना ही लोगो को जो सुनापन मिला वो पुरा होगा.
हम
खबरो मे मरनेवालो को देखते है--- फिर कुछ दिन बाद मारनेवालो कि सज़ा की खबर....लेकीन
ईसके पीछे और एक सच्चाई है जो अक्सर खबोरो मे नही आता--- उन परिवारो का हाल...जीनहो
ने किसि अप्ने को खोया है, कैसे बीत ती होगी उनकी ज़िंदगी--- कभी
सोच कर देखिए. उन सब परिवारो का तक़्दीर तो शयतानो ने लिख दी--- उनके अप्नो को छीन कर...
फिर
भी हम अच्छाई की जीत की बाते करते है---
Border पे आये दिन जवान मारे जाते है, कभी उनके परिवारो के बारे
मे भी सोचिए...कितते सारे जवान ऐसे भी थे जो अप्ने परिवार मे एक हि earning
member थे, क्या हाल हुअ होगा उनके परिवार का उनके
गुज़र जाने के बाद....
तक़्दीर
तो शयतान लिखते है...
फिर
भी ना जाने क्युं लोग
अच्छाई
की जीत के बाते करते है.
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