वोह शाम ही क्या ...
जो तेरी जुल्फों कि
घटाओ से ना हो
वोह सुबह ही क्या
जो तेरे पल्के उठाने
से ना खिले
वोह एह्सास बड़ी फिकी
है
जिसमें तेरी खुशबू
नही
हर वोह वजूद बेमतलब
है
जिसमें तेरे आने का
आहट नही
वोह दुआ कोइ दुआ नही
वोह फरियाद भी बेकार
जिसमें तुझे ना मांगा
हो
वोह मोहब्बत हि क्या
जिसमें तेरी बेवफाइ
ना हो
"वोह मोहब्बत हि क्या
ReplyDeleteजिसमें तेरी बेवफाइ ना हो"
वाह! क्या लिखा है I ज़बरदस्त !
Thanks a lot for the appreciation, always means a lot.
Deleteबहुत अच्छी लिखी कविता
ReplyDeleteThank you so much.
Delete:)
ReplyDeleteLovely lines, Jyotirmoy.
Glad you liked it, thanks a lot.
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteThank you so much.
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